कैसे निकलूं तुझे इस कीचड़ से
मेरे अंगना में नन्ही कली ने जन्म लिया ।
4 अगस्त 2014 में मेरे आंगन में आई नन्ही कली ।
वो आंगन जिसमे कीचड़ खूब फैला था ।
लेकिन मैं उससे निकल नही पा रही थी ।
और जिस कीचड़ में मै फंसी थी उसका भी मुझे मेरी नन्ही कली के आने के बाद ही पता चला ।
फिर शुरू हुआ एक युद्ध ........अंतर्मन का युद्ध ।
और उस युद्ध में उन्ही लोगो के साथ हम रहना था उसी भूमि पर जिस भूमि पर हमारा अंतर्मन युद्ध था अपने ही साथ।
कैसे करू क्या करू किससे कहूं ........... हर स्त्री की परेशानी ।
पापा भी बिस्तर पर है , ना जाने कब हमें छोड़ कर चले जाए , ऐसे में घर पर ये बात कैसे और किसको बताऊं ।
और यहां सुसराल में अपने बेटे ,भाई की गलती छुपाने के लिए , मुझे ही सुनाया जाता है ।
क्या करूं कुछ नही समझ आ रहा था।
फिर लगा कोशिश करते है समझाने की अगर समझ जाए तो अच्छा है ,नही तो देखते है फिर क्या करें।
शायद पहली बार उस दिन मैने भगवान से दुआ की अगर पापा को बुलाना ही है तो जल्दी बुलाओ जिससे मैं अपना फैसला ले पाऊं ।
और इस कीचड़ से अपनी नन्ही कली को निकाल कहीं दूर ले जाऊं।
क्यों मेरी कली अपने पिता के बुरे कर्मो का फल भोगे।
फिर वहीं हालातों से झुझती रही , रोज़ एक नई चुनौती का सामना करती रही ।
ससुराल वालो ने भी बोल दिया तुम्हारी बेटी है खुद संभालो ।
अगर मेरे बेटी नही बेटा होता तब भी क्या ऐसा ही बोला जाता ?????नही तब नही बोला जाता ।
और अच्छा है प्रभु ने मुझे नन्ही कली मेरी बेटी दी बेटा नही।
कभी खुद के लिए रोटी नही तो कभी बेटी के लिए दूध नही ।
और ऊपर से सबकी बातें , और लोगो का दरवाजे पर बोलना ।
कब तक, कब तक ,कब तक आखिर कब तक बर्दाश्त करती ???????
नीर( निधि सक्सैना)✍️
Sachin dev
05-Dec-2022 06:14 PM
बहुत खूब
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Punam verma
05-Dec-2022 04:04 PM
Nice
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Gunjan Kamal
05-Dec-2022 03:58 PM
👏👏👏👌
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